रबिन्द्र 
नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी  ने ये पत्र 
सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न  गाया जाये।
वन्दे मातरम Vs जन गण मन
वन्दे मातरम की कहानी
ये वन्दे मातरम नाम का जो गीत है जिसे हम राष्ट्रगीत के
 रूप में जानते हैं उसे बंकिम चन्द्र चटर्जी ने 7 नवम्बर 1875 को लिखा था |
 बंकिम चन्द्र चटर्जी बहुत ही क्रन्तिकारी विचारधारा के व्यक्ति थे | देश 
के साथ-साथ पुरे बंगाल में उस समय अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त आन्दोलन चल 
रहा था और एक बार ऐसे ही विरोध आन्दोलन में भाग लेते समय इन्हें बहुत चोट 
लगी और बहुत से उनके दोस्तों की मृत्यु भी हो गयी | इस एक घटना ने उनके मन
 में ऐसा गहरा घाव किया कि उन्होंने आजीवन अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का 
संकल्प ले लिया उन्होंने | बाद में उन्होंने एक उपन्यास लिखा जिसका नाम था 
"आनंदमठ", जिसमे उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बहुत कुछ लिखा, उन्होंने 
बताया कि अंग्रेज देश को कैसे लुट रहे हैं, ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से 
कितना पैसा ले के जा 
रही है, भारत के लोगों को वो कैसे मुर्ख बना रहे हैं, ये सब बातें उन्होंने
 उस किताब में लिखी | वो उपन्यास उन्होंने जब लिखा तब अंग्रेजी सरकार ने 
उसे प्रतिबंधित कर दिया | जिस प्रेस में छपने के लिए वो गया वहां अंग्रेजों
 ने ताला लगवा दिया | तो बंकिम दा ने उस उपन्यास को कई टुकड़ों में बांटा और
 अलग-अलग जगह उसे छपवाया औए फिर सब को जोड़ के प्रकाशित करवाया | अंग्रेजों
 ने उन सभी प्रतियों को जलवा दिया फिर छपा और फिर जला दिया गया, ऐसे करते 
करते सात वर्ष के बाद 1882 में वो ठीक से छ्प के बाजार में आया और उसमे 
उन्होंने जो कुछ भी लिखा उसने पुरे देश में एक लहर पैदा किया | शुरू में तो
 ये बंगला में लिखा गया था, उसके बाद ये हिंदी में अनुवादित हुआ और उसके 
बाद, मराठी, गुजराती और अन्य भारतीय भाषाओँ में ये छपी और वो भारत की ऐसी 
पुस्तक बन गया जिसे रखना हर क्रन्तिकारी के लिए गौरव की बात हो गयी थी | 
इसी पुस्तक में उन्होंने जगह जगह वन्दे मातरम का घोष किया है और ये उनकी 
भावना थी कि लोग भी ऐसा करेंगे | बंकिम बाबु की एक बेटी थी जो ये कहती थी 
कि आपने इसमें बहुत कठिन शब्द डाले है और ये लोगों को पसंद नहीं आयेगी तो 
बंकिम बाबु कहते थे कि अभी तुमको शायद समझ में नहीं आ रहा है लेकिन ये गीत कुछ दिन में देश के हर जबान पर होगा, लोगों में जज्बा पैदा करेगा और ये एक दिन इस देश का राष्ट्रगीत बनेगा | ये गीत देश का राष्ट्रगीत 
 बना लेकिन ये देखने के लिए बंकिम बाबु जिन्दा नहीं थे लेकिन जो उनकी सोच 
थी वो बिलकुल सही साबित हुई| 1905 में ये वन्दे मातरम इस देश का राष्ट्रगीत बन गया | 1905 में क्या हुआ था कि अंग्रेजों की सरकार ने बंगाल का बटवारा कर दिया था | अंग्रेजों का एक अधिकारी था कर्जन
 जिसने बंगाल को दो हिस्सों में बाट दिया था, एक पूर्वी बंगाल और एक 
पश्चिमी बंगाल | इस बटवारे का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये था कि ये धर्म के नाम
 पर हुआ था, पूर्वी बंगाल मुसलमानों के लिए था और पश्चिमी बंगाल हिन्दुओं 
के लिए, इसी को हमारे देश में बंग-भंग के नाम से जाना जाता है | ये देश में
 धर्म के नाम पर पहला बटवारा था उसके पहले कभी भी इस देश में ऐसा नहीं हुआ 
था, मुसलमान शासकों के समय भी ऐसा नहीं हुआ था | खैर ...............इस 
बंगाल बटवारे का पुरे देश में जम के विरोध हुआ था , उस समय देश के तीन बड़े
 क्रांतिकारियों लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र
 पल ने इसका जम के विरोध किया और इस विरोध के लिए उन्होंने वन्दे मातरम को 
आधार बनाया | और 1905 से हर सभा में, हर कार्यक्रम में ये वन्देमातरम गाया 
जाने लगा | कार्यक्रम के शुरू में भी और अंत में भी | धीरे धीरे ये इतना 
प्रचलित हुआ कि अंग्रेज सरकार इस वन्दे मातरम से चिढने लगी | अंग्रेज जहाँ 
इस गीत को सुनते, बंद करा देते थे और और गाने वालों को जेल में डाल देते 
थे, इससे भारत के क्रांतिकारियों को और ज्यादा जोश आता था और वो इसे और जोश
 से गाते थे | एक क्रन्तिकारी थे इस देश में जिनका नाम था खुदीराम बोस, ये 
पहले क्रन्तिकारी थे जिन्हें सबसे कम उम्र में फाँसी की सजा दी गयी थी | 
मात्र 14 साल की उम्र में उसे फाँसी के फंदे पर लटकाया गया था और हुआ ये कि
 जब खुदीराम बोस को फाँसी के फंदे पर लटकाया जा रहा था तो उन्होंने फाँसी 
के फंदे को अपने गले में वन्दे मातरम कहते हुए पहना था | इस एक घटना ने इस 
गीत को और लोकप्रिय कर दिया था और इस घटना के बाद जितने भी क्रन्तिकारी हुए
 उन सब ने जहाँ मौका मिला वहीं ये घोष करना शुरू किया चाहे वो भगत सिंह 
हों, राजगुरु हों, अशफाकुल्लाह हों, चंद्रशेखर हों सब के जबान पर मंत्र हुआ
 करता था | ये वन्दे मातरम इतना आगे बढ़ा कि आज इसे देश का बच्चा बच्चा 
जानता है | कुछ वर्ष पहले इस देश के सुचना विभाग (Information bureau) ने 
एक सर्वे कराया जिसमे देश के लोगों से ये पूछा था कि देश का कौन सा गीत 
सबसे पसंद है आपको, तो सबसे ज्यादा लोगों ने वन्दे मातरम को पसंद किया था 
और फिर इसी विभाग ने पाकिस्तान और बंग्लादेश में यही सर्वे कराया तो वहां 
भी ये सबसे लोकप्रिय पाया गया था | इंग्लैंड की एक संस्था है बीबीसी उसने 
भी अपने सर्वे में पाया कि वन्दे मातरम विश्व का दूसरा सबसे लोकप्रिय गीत 
है |     
जन गण मन की कहानी  
 सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल विभा
जन
  को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ
  खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर  
राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया।  
पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपने  
इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये। इंग्लैंड 
 का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया। रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव 
बनाया  गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा।
उस  समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार
 के  बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े 
भाई  अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिवि
जन
  के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी  
में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों
  के लिए। रविंद्रनाथ टैगोर ने 
मन से या बे
मन से जो गीत लिखा उसके बोल है "
जन गण 
मन
  अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता"। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में  
अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि 
 ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था।
इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है "भारत के नागरिक, भारत की 
जनता अपने 
मन
  से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक  
(Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय 
 हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब  
महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और  
जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है ,
  तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है।
  तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो )  
तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। "
जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया। जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस 
जन गण 
मन
  का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया। क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से  
स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और  
इसका अर्थ क्या है। जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना  
सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह
  बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के)  
लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए।  
जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था।
उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से 
मना
  कर दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को  
उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार  
देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे  
दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो  
नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है।  
जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक  
रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।
रविन्द्र नाथ टैगोर की ये  सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला 
कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग  गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा क़ि
 अभी भी तुम्हारी आँखों से  अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा,
 तुम अंग्रेजों के इतने  चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो
 गए ? फिर गाँधी जी स्वयं  रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत जोर से 
डाटा कि अभी तक तुम  अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर 
रविंद्रनाथ टैगोर की नीद  खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल 
पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत  को लौटा दिया। सन 1919 से पहले जितना कुछ भी 
रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो  अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के 
बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो  के खिलाफ होने लगे थे।
रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ  बनर्जी लन्दन में रहते थे और 
ICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र  लिखा था (ये 1919 के बाद की
 घटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत '
जन गण 
मन'
  अंग्रेजो के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का  
अर्थ अच्छा नहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है। लेकिन अंत में 
 उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे  
सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो  
सबको बता दे। 7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र
  को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्व
जनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये 
जन गन मन गीत न गाया जाये।
1941  तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई। 
जिसमे  एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल 
नेहरु  थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरु चाहते थे कि 
स्वतंत्र  भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition 
Government)  बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर 
सरकार बनाना तो  भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण लोकमान्य
 तिलक कांग्रेस  से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। कोंग्रेस के दो 
हिस्से हो गए। एक नरम  दल और एक गरम दल।
गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे  क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे मातरम
 गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे  मोती लाल नेहरु (यहाँ मैं स्पष्ट कर 
दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की  आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके 
थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी  दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे 
क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय  थे)। लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर
 अंग्रेजो के साथ रहते थे। उनके साथ रहना,  उनको सुनना, उनकी बैठकों में 
शामिल होना। हर समय अंग्रेजो से समझौते में  रहते थे। वन्देमातरम से 
अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी। नरम दल वाले गरम दल  को चिढाने के लिए 1911 
में लिखा गया गीत "
जन गण 
मन" गाया करते थे और गरम दल वाले "वन्दे मातरम"।
नरम  दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था 
तो  अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि 
मुसलमानों  को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती 
(मूर्ति पूजा)  है। और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी
 है। उस समय  मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे।
 उन्होंने भी  इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को
 (उस समय तक)  भारतीय थे 
मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया और मुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से 
मना कर दिया। जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें रा
जनीति
  कर डाली। संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद  
ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान  
स्वीकार करने पर सहमति जताई।
बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं  माना। और उस एक सांसद का नाम था पंडित
 जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि  वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के दिल 
को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना  चाहिए (दरअसल इस गीत से मुसलमानों 
को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट  पहुंचती थी)। अब इस झगडे का फैसला कौन 
करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास।  गाँधी जी ने कहा कि 
जन गन मन
  के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में 
 नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा  
विकल्प झंडा गान के रूप में दिया "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे
  हमारा"। लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए।
नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और 
जन गन मन
  ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है। उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस 
मुद्दे  को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी
 ने 
जन गण 
मन  को राष्ट्र
 गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया  जबकि इसके 
जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा  पक्ष 
नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी  गया 
नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों  के
 दिल को चोट पहुंचे, मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस  
आदमी ने पाकिस्तान बनवा दिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते
  थे, 
जन गण 
मन को इस लिए
  तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और  
वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।
बीबीसी  ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग 
रहते थे,  उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो 99
 % लोगों  ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई कि
 दुनिया के  सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई देश 
है जिनके  लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि 
इसमें जो लय है  उससे एक जज्बा पैदा होता है।
तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और 
जन गण 
मन का। अब ये आप को तय करना है कि आपको क्या गाना है ?
 
Reference: http://www.socialservicefromhome.com/2011/08/reality-of-jan-gan-man-national-anthem.html?showComment=1344929791333#c7181800760586491765